मरीज से अपनापन दिखाएँ और टीबी से स्वस्थ बनाएं

प्रयागराज |  मेजा ब्लाक के संजलिया का पुरवा, गाँव नेवरिया निवासी किशन बिहारी का परिवार कुछ दिन पहले तक बड़े ही मेलजोल के साथ रह रहा था लेकिन जैसे ही जांच में पता चला कि किशन को टीबी की बीमारी है तो परिवार वालों ने उनसे पूरी तरह से मुंह मोड़ लिया | इतना ही नहीं उनका कमरा, कपड़े और बर्तन तक अलग कर दिए, ऐसे में वह अपने को असहाय महसूस करने लगे | उनकी इस पीड़ा को देखकर पत्नी ने यह बात टीबी चैम्पियन गोरखनाथ तक पहुंचाई |

टीबी से उबरने के बाद समुदाय को टीबी से बचाने और भ्रांतियों को दूर करने में जुटे मेजा ब्लाक के टीबी चैम्पियन गोरखनाथ ने किशन बिहारी के घर पहुंचकर किशन बिहारी और परिवार वालों को साथ बैठाकर बताया कि यह एक संक्रामक बीमारी है, जो किसी को भी हो सकती है | यह इलाज से पूरी तरह से ठीक होने वाली बीमारी है | सतर्कता बरतते हुए मरीज परिवार के साथ रहकर इससे ठीक हो सकता है | मरीज को घर पर मास्क लगाकर रहना चाहिए, बलगम को गड्ढ़े या मिट्टी से दबा देना चाहिए क्योंकि यह बीमारी खांसने-छींकने से निकलने वाली बूंदों के सम्पर्क में आने से दूसरों को हो सकती हैं | उन्होंने बताया कि इस बीमारी से उबरने के लिए जिस तरह से नियमित दवा सेवन और पौष्टिक आहार की अहम् भूमिका है, उसी तरह से सामाजिक सहयोग भी बहुत जरूरी है | इससे मरीज का मनोबल बढेगा और वह जल्दी स्वस्थ बन सकेगा | गोरखनाथ के इस प्रयास से घर वालों की भ्रांतियां दूर हुईं और अब फिर से लोग सतर्कता बरतते हुए किशन बिहारी को हरसम्भव मदद कर  रहे हैं |       

टीबी चैम्पियन गोरखनाथ का कहना है कि भ्रांतियों के चलते बहुत से लोग आज भी इसे छुआछूत की बीमारी मान लेते हैं जो कि पूरी तरह गलत है | वह ऐसे लोगों को ही जागरूक बनाने में जुटे हैं और बताते हैं कि दो हफ्ते से अधिक समय तक खांसी आने, बुखार बना रहने, वजन लगातार गिरने और भूख न लगने की समस्या हो तो स्थानीय सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर टीबी की जांच जरूर कराएँ | जाँच में टीबी की पुष्टि पर इलाज का पूरा कोर्स करना बहुत जरूरी है | दवा खाने के कुछ दिन बाद आराम मिलने पर दवा बंद करने की भूल कतई न करें, इससे टीबी गंभीर रूप ले सकती है और इसका इलाज लम्बे समय तक चल सकता है |

गोरखनाथ अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं  कि वर्ष 2014 में उन्हें गले की टीबी (गले की गिल्टी) हुई थी| जाँच में टीबी की पुष्टि के बाद उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया बल्कि दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ चिकित्सक के बताये अनुसार इलाज का पूरा कोर्स किया और खानपान का पूरा ख्याल रखा |  वह बताते हैं कि दवा शुरू करने के कुछ दिनों तक सुस्ती, जी मिचलाना , खुजली एवं चकत्ते  पड़ना जैसी कुछ दिक्कतें आयीं,  जिसके लिए चिकित्सक  से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि यह  सामान्य लक्षण होते हैं जो कुछ दिन में ठीक हो जायेंगे | उन्होंने कहा कि दवा का सेवन नियमित तौर पर  छह  माह तक किया, जिसके बाद डाक्टरों की सलाह पर ही दवा को बंद किया | गोरखनाथ कहते हैं यह तभी संभव हो पाया क्योंकि उनका परिवार पूरी तरह से उनके साथ था और इलाज से लेकर हर जरूरत का ध्यान रख रहा था | वह कहते हैं कि इलाज के दौरान उनको कई ऐसे भी टीबी मरीज मिले जो सामाजिक उपेक्षा का सामना करने के चलते अपने को असहाय समझने लगे थे | उनकी दशा को देखकर ही ठान लिया कि स्वस्थ होकर वह टीबी मरीजों को अपने स्तर पर हरसम्भव मदद पहुंचाएंगे और लोगों में जागरूकता लायेंगे | इसी संकल्प के साथ वर्ल्ड विजन इण्डिया संस्था से जुड़कर लोगों को जाँच से लेकर इलाज तक में  मदद पहुंचा रहा हूँ और समझा रहा हूँ कि टीबी मरीजों को पूर्ण सामाजिक सहयोग पहुंचाते हुए स्वस्थ बनायें और वर्ष 2025 तक क्षय रोग मुक्त देश बनाने में भागीदार बनें | 

जिला क्षय रोग  अधिकारी डॉ. अरुण तिवारी का कहना है कि आज भी लोग इस बीमारी  को छिपाते हैं क्योंकि उनको लगता है कि लोग न जाने कैसा व्यवहार करेंगे | इसी झिझक को मिटाने में स्वास्थ्य विभाग और संस्थाएं जुटी हैं | निक्षय मित्र बनकर लोग टीबी मरीजों को मदद पहुंचा रहे हैं और बदलाव लाने की कोशिश में जुटे हैं |

जिला समुदाय समन्वयक नितिन पाण्डेय का कहना है कि वर्ल्ड विजन इण्डिया संस्था टीबी मरीजो के साथ काम कर रही है, टीबी से स्वस्थ होने वाले ऐसे लोगों को संस्था टीबी चैम्पियन के रूप में तैयार कर रही है जो दूसरे मरीजों के मददगार बन सकें | इसके लिए उन्हें टीबी के बारे में बताया जाता है और मरीजों से बातचीत करने की कला सिखाई जाती है | इस समय जिले में 14 टीबी चैम्पियन कार्य कर रहे हैं |

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