लखनऊ :डॉक्टर राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर पेप टॉक शीर्षक से विशेष व्यख्यान आयोजित किये ,जिसमे ऑनलाइन कार्यक्रम के माध्यम से विश्वविद्यालय के छात्र, शिक्षक, अधिकारी, एवं कर्मचारी जुड़े । कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रोफेसर सुबीर भटनागर ने महिला सशक्तिकरण की प्रक्रिया में भारतीय ज्ञान दर्शन के प्राकर्तिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं में निहित मानवीय मूल्यों की संरचना पर चर्चा किया ।

उन्होंने अपने अभिभाषण में महिलाओं के सम्मान एवं सुरक्षा हेतु कानूनी पहलुओं पर भी चर्चा की । इस अवसर पर उपस्थित मुख्य वक्ताओं में शिल्पा गुअल, इंडियन डिफेन्स एस्टेट्स सर्विस अधिकारी , मेजर गुंजन गुप्ता, एक्स इंडियन आर्मी अफसर एवं ऑपरेशन रक्षक, जम्मू और कश्मीर,अपने साहसी नेतृत्व के लिए राष्ट्रपति मैडल से सम्मानित , और टाइम्स ऑफ़ इंडिया, राष्ट्रीय दैनिक की लखनऊ एडिटर राशि लाल ने विचार प्रस्तुत किये। वक्ताओं ने महिला सशक्तिकरण की परिपेक्ष्य में वीमेन इन लीडरशिप रोल्स एवं वीमेन इन पब्लिक अफेयर्स पर चर्चा करते हुए अपने अनुभवों को साझा किया।

सुश्री शिल्पा गुअल ने कहा कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में मुख्य चुनौती पूर्वाग्रह और पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना है। पुराने समय से ही महिलाओं को कार्यपालक माना जाता रहा है और पुरुषों को निर्णय लेने वाला माना गया है। एक बार नौकरी करने या 26,27 साल की उम्र होते ही वह लगातार समाज की निगरानी में रहती है, जबकि इस उम्र के पुरुषों को शादी करने के लिए अभी भी बहुत समय दिया जाता है। उम्मीद रहती है कि वह डिग्री हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत से पढ़ाई करेगी नहीं तो उसे अच्छा वर नहीं मिलेगा।

भारत के ग्रामीण परिवेश में, उसे एक निश्चित उम्र के बाद स्कूल जाना बंद कर दिया जाता है, जिससे बाल विवाह, गर्भावस्था, शिशु मृत्यु दर, मातृत्व मृत्यु दर आदि जटिलताओं को बढ़ावा मिलता है। हमें परिवारों, स्कूलों, कार्यस्थलों, गाँवों, समाजों को आगे आने और रूढ़ियों को तोड़ने और सशक्तिकरण की अति आवश्यकता है। हमें लड़कों और पुरुषों को अपनी बहनों, माताओं, महिला मित्रों, पत्नियों और बेटियों के साथ सहानुभूति व सम्मान करने के लिए कहा जाना चाहिए। यह समय महिलाओं को निडर होने की शिक्षा देने का है ।

मेजर गुंजन गुप्ता ने कहा की महिलाओं को अवसर की बस आवश्यकता है! महिलाएं जन्मजात नेता होती हैं। वे हमारे समाज में अपने घरों का नेतृत्व और प्रबंधन करती हैं जो उनके व्यवसायिक जीवन में भी प्रकट होता है। जैविक विविधता ही एक कारण है महिला और पुरुष में अंतर का, जिसके कारण कभी भी भेदभाव या असमानता नहीं होनी चाहिए। स्वयं द्वारा नेतृत्व करना भारतीय सेना का मंत्र है। "चेतवोड संहिता" इसी का एक प्रतीक है। और जब आग में तप के नेतृत्व करना सीखती है, तो सचमुच, एक महिला नागरिक जीवन में किसी भी भूमिका में पथ प्रदर्शन कर सकती है। मेजर गुंजन ने कहा की महिला अधिकारियों ने 1992 में सेना में एक शॉर्ट सर्विस कमीशन से लेकर एक स्थायी कमीशन पाने तक का लंबा सफर तय किया है। महिलाएं रेजिमेंट में एक कंपनी की छोटी संख्या से लेकर सम्पूर्ण चिकित्सा कोर का नेतृत्व करती हैं! 1992 में केवल सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में भूमिका पाने से लेकर आज के समय में लड़ाकू विमान उड़ाने तथा कमांडो कोर्स करने तक, महिला अधिकारियों ने पहाड़ों के शिखर से लेकर समुद्र की लहरों को जीता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एडिटर सु श्री राशि लाल ने कहा कि बालिकाओं या महिलाओं की दिशा और दशा को समझने और समझाने के सम्यक प्रयास होने चाहिए। किसी एक दिन का उत्सव और उत्साह हमारे समाज में निहित सांस्कृतिक एवं व्यावहारिक पक्ष को जानने के लिए काफी नहीं है। अवश्यकता है उनके आत्मनिर्भर बनने की। आर्थिक मजबूती की। राशि जी ने महिलाओं से जुड़े सेक्सचुअल और टेक्सचुअल पॉलिटिक्स पर भी चर्चा करते हुए कहा की महिलाओं संबंधित भद्दे कमेंट, इंडीसेंट जोक आदि को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए। उन्होने महिला सशक्तिकरण हेतु दैनिक जीवन में होने वाली घटनाओं पर भी परिचर्चा का आवाहन किया।

कार्यक्रम का सञ्चालन कर रही डॉ राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय की शिक्षक एवं मिशन शक्ति समिति मेंबर डॉ अलका सिंह ने कहा कि , मिशन शक्ति महिला सशक्तीकरण की दिशा में प्रदेश सरकार का न केवल एक स्वर्णिम प्रयास है अपितु अवसर भी है। जब आज हम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनके अस्तित्व और योगदान पर उत्सव मना रहे हैं तो प्रदेश सरकार की इस मुहिम के मंतव्यों में महिलाओं के स्वास्थ्य की चर्चा एक महत्वपूर्ण विषय के संवाद का आह्वान करता है। विषय और भी गंभीर हो जाता है जब हम बालिकाओं और महिलाओं के पोषण और उससे जुडी जागरूकता के प्रयासों को कोरोना महामारी के दृष्टिगत इम्यून सिस्टम वर्धन हेतु समझने का प्रयास करते हैं। शक्ति संवेदनाओं के सम्यक सम्प्रेषण से और संवाद से प्रबल हो जाती है जब महिलायें और बालिकायें स्वास्थ्य के मंतव्यों को एक सम्यक समझ के साथ स्वयं एवं परिवार और समाज के सम्बंधित संवादों से जोड़ कर देखती हैं और समझती हैं। स्वास्थ्य केवल शारीरिक क्षमताओं और सलामती का ही पक्ष न होकर , मानसिक स्वास्थ्य को भी परिभषित करता है।

इक्कीसवीं शताब्दी की इस दुनिया में भारत समेत अन्य देशों की महिलायें भी एक ऐसे भविष्य की कामना करती हैं जहाँ उनके सम्मान और सुरक्षा का वातावरण हो , विकास के अवसर हों और उनके अधिकार एवं सम्मान सुरक्षित हों। ये सोच यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम फॉर वीमेन में भी परिलक्षित होती है। 8 मार्च 2021 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे संयुक्त राष्ट्र संघ का विषय भी इससे ही प्रेरित है। 'वीमेन इन लीडरशिप : अचीविंग ऍन इक्वल फ्यूचर इन द कोविड -19 वर्ल्ड' विषयक चर्चा और परिचर्चा का आह्वान करता है जहाँ यह अपेक्षा की गयी है की हमारे समाज में ऐसे प्रयास और प्रयत्न हों जिससे हम महिलाओं के लिए पुरुषों के साथ बराबरी का भविष्य निर्धारित कर सकें।
मिशन शक्ति समिति के अध्यक्ष एवं समाजशास्त्री प्रो संजय सिंह ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया और कहा कि शक्ति संवाद एक महत्त्वपूर्ण विषय है।

मिशन शक्ति के मेंबर डॉ के ऐ पांडेय एवं अन्य सदस्य और छात्र छात्रों ने मुख्य वक्ताओं से प्रश्नोत्तरी श्रृंखला में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री अनिल कुमार मिश्र ने कार्यक्रम के सफल आयोजन पर हर्ष व्यक्त किया।

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