भाषा, साहित्य और समाज : काव्य पाठ, चर्चा एवं संवाद

लखनऊ : एक्प्रेशन्स इन लैंग्वेजेज एंड आर्ट्स फॉउंडेशन, लखनऊ द्वारा दिनांक 2 अक्टूबर ,2020 को "आजादी के अमृत महोत्सव" के परिप्रेक्ष्य में श्रृंखला "भाषा, साहित्य और समाज/ काव्य पाठ, चर्चा एवं संवाद" का समापन समारोह आयोजित किया गया।


हिंदी दिवस 14 सितंबर 2021 से प्रारम्भ इस श्रंखला का 2 अक्टूबर गांधी जयंती के शुभ अवसर पर समापन किया गया। "भाषा, साहित्य और समाज/ काव्य पाठ,चर्चा एवं संवाद" की संयोजिका सुश्री अनुकृति राज ने बताया कि "भाषा , साहित्य और समाज और राष्ट्र को केंद्र में रखकर इस विचार श्रंखला में 19 दिन में 19 वक्ताओं ने अपने विभिन्न विषयों पर अपने विचार रखे। श्रृंखला में देश के विभिन्न भागों से जुड़ कर , डॉ पूर्णिमा कुलकर्णी, डॉ ऋतु सिंह, मनीष मानसी महाराणा, डॉ सुमेधा द्विवेदी, श्रुति भार्गवा, हर्षिता अरोड़ा, कौमुदी सिंह, डॉ पूजा झा, डॉ रचना दवी, डॉ निलॉय मुखर्जी, कैप्टन मिलिंद राज आनंद, डॉ शुभम सिंह, भारत भूषण, विपुल सिंह, डॉ वैदूर्य जैन, दीप्ति कंडारी, डॉ छाया सिंह, भव्या अरोड़ा, डॉ कुलवंत सिंह एवं डॉ हरि प्रताप त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य दिए।

सभी वक्ताओं ने अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा किया , जिनमे से प्रमख विषय रहे - 'राष्ट्र और राष्ट्रवाद','आध्यात्मिकता और आजादी', 'समाज और साहित्य', 'रविंद्रनाथ टैगोर' 'महाश्वेता देवी के परिपेक्ष में राष्ट्रबोध', 'बुद्धिज्म', 'महाभारत', 'आजादी और युवा पीढ़ी', 'समाज और साहित्य', 'हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाएं' 'राष्ट्रीय चेतना और बहुसंस्कृतिवाद' एवं 'समाज में मीडिया की भूमिका।" उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य युवाओं में राष्ट्र , समाज , भाषा और साहित्य के प्रति सम्यक दृष्टिकोण का विकास करना है।

2 अक्टूबर 2021 को हुए समापन समारोह में सेंट जेवियर्स कॉलेज मुंबई के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर अवकाश जाधव ,तथा लखनऊ विश्वविद्यालय के श्री जय नारायण पीजी कॉलेज लखनऊ के अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सिद्धार्थ सिंह मुख्य वक्ता रहे। जहाँ डॉक्टर अवकाश जाधव ने 'इतिहास के पन्नों से' शीर्षकान्तर्गत अपनी सशक्त कविता पढ़ी वहीँ डॉ सिद्धार्थ सिंह ने स्वराज पर अपनी विशद मीमांसा प्रस्तुत किया। एक्सप्रेशंस इन लैंग्वेज एंड आर्टस फाउंडेशन की सलाहकार एवं लोहिया विधि विश्वविद्यालय की शिक्षक डॉ अलका सिंह ने राष्ट्र चेतना पर अपनी कुछ स्वरचित रचनाएं साझा किया। इस पूरे कार्यक्रम की समन्वयक रही सुश्री अनुकृति राज जो कि लखनऊ विश्वविद्यालय की शोधार्थी भी हैं।

उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय-चेतना पहचान की एक साझा भावना है, इस चेतना के बिना किसी राष्ट्र का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। यदि हम भारत वर्ष के मूल्यों की बात करें तो हम देखते हैं कि भारतीय राष्ट्रीयता किसी एक भाषा या एक धर्म पर आधारित नहीं है बल्कि शुरू से ही यह समावेशी रही है। राष्ट्र की मूल संकल्पना अपने लोगों से लगाव की संकल्पना से जुड़ी है, साझे हितों और साझी संस्कृति के तत्त्वों से जुड़ी है। पश्चिम में साझे आर्थिक क्षेत्र को राष्ट्र की संकल्पना में सबसे ऊपर रखा गया और वहां साम्राज्यवाद पैदा हुआ। नतीजतन‘हम’ और ‘अन्य’ में बांट कर दुनिया को देखा गया।पश्चिम की जो राष्ट्रवादी संकल्पना थी वह समावेशी न होकर असमावेशी थी।

कार्यक्रम श्रंखला में देश विदेश से जुड़े विद्वानों एवं अध्येताओं ने प्रतिभाग किया। विदेशी अध्येताओं में श्री आक्षेन्द्रो मक्सिमिलियन सुश्री गालूह द्वी अजेन्ग , आंद्री मौलाना , अदि नुगृहो , आयु अंदरियागसी , सिनता नोविया , अदेपुत्र हसिबुअन , डायना दबोरा , नदिअ पुत्री आर्डियनि, जॉन मुलीआंगो आदि ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम श्रृंखला में , एक्प्रेशन्स इन लैंग्वेजेज एंड आर्ट्स फॉउंडेशन के अध्यक्ष प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह ने राष्ट्र निर्माण में सृजनात्मक इकाईयों एवं ज्ञानकोशों के महत्व को इंगित किया।

संस्था के सचिव डॉ कुलवंत सिंह ने बताया कि एक्प्रेशन्स इन लैंग्वेजेज एंड आर्ट्स फॉउंडेशन साहित्य , कला और संस्कृति के क्षेत्र में निरंतर नवोन्वेषी प्रयोग कर रही है। यह जहाँ एक ओर साहित्य और संस्कृति पर शोध एवं संकलन हेतु तत्पर है वहीँ साहित्यकारों एवं कलाकारों हेतु मंच प्रदान करती है।

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