साइलेंट किलर 'हाइपोक्सिया' चुपके से निगल रहा जिंदगी

 प्रयागराज : शीतलहर चलने के कारण तापमान में दिन-प्रतिदिन गिरावट दर्ज हो रही है। ऐसे में अलाव का प्रयोग ठंड में राहत का सहारा बना हुआ है। पर कोयला, लकड़ी, केरोसिन के जलने से जहरीली गैस कॉर्बन मोनोऑक्साइड निकलती हैं। कार्बन मोनोऑक्साइड से भरे वातावरण में सांस लेने से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। यह गैस नींद के दौरान व्यक्ति को बेहोश कर हाइपोक्सिया का शिकार बना लेती है। इस स्थिति में दम घुटने से मृत्यु तक हो सकती है। इसलिए बिना वेंटिलेशन वाले कमरे में अलाव जलाने से बचें।

जिला क्षय रोग अधिकारी व सीरो सर्विलान्स के नोडल डॉ॰ अरुण कुमार तिवारी ने बताया कि कार्बन-मोनोऑक्साइड केरोसिन, कोयला व लकड़ी के ठीक से न जलने पर ज्यादा मात्रा में निकलती है। जो आक्सीजन को बंद कमरे से रिप्लेस कर देती है। इससे कमरे में कार्बन-मोनोऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ जाती है। यह गैस फिर सांस के माध्यम से व्यक्ति के फेफड़े में पहुँचता है। क्योकि मनुष्य के रक्त में मौजूद आरबीसी, ऑक्सीजन की जगह कार्बन मोनोऑक्साइड गैस से ज्यादा जल्दी जुड़ जाती है। इसलिए धीरे-धीरे व्यक्ति के खून में ऑक्सीजन की जगह कार्बन मोनोऑक्साइड पहुँचने लगता है। जो मस्तिष्क व ऊतकों को आक्सीजन कि जगह कार्बन मोनोऑक्साइड पहुँचाने लगता है। इससे मस्तिष्क में धीरे-धीरे आक्सीजन कम हो जाती है। मस्तिष्क में आक्सीजन के इसी कमी के कारण व्यक्ति नींद के दौरान बेहोश हो जाता है। इस स्थिति में कभी कभी व्यक्ति सांस नहीं ले पाता इसी स्थिति को हाइपोक्सिया कहते हैं। इस स्थिति में दम घुटने से उसकी मृत्यु भी हो सकती है। जानकारी व जागरूकता के अभाव में यह साइलेंट किलर 'हाइपोक्सिया ' मौत के मुंह में ढकेल रहा जिंदगी।

कोरोना संक्रमित व विजेता एवं गर्भवती, नवजात व बुजुर्गों को खतरा ज्यादा
कोरोना महामारी की दूसरी लहर से संक्रमित हुए लोग व जो व्यक्ति फेफड़े व सांस संबंधी किसी बीमारी से गुजर रहे हैं व जिन्हें ब्लडप्रेशर व एनीमिया की समस्या है उनके लिए बंद कमरे में अलाव का प्रयोग ज्यादा खतरनाक है। इसके साथ ही बुजुर्गों, बच्चों व गर्भवती की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है इन लोगों के लिए भी बंद कमरे में अलाव का प्रयोग खतरे की घंटी है। गर्भ में पल रहा शिशु व माँ दोनों के लिए बंद कमरे में अलाव का प्रयोग खतरनाक है। बच्चे वयस्कों की तुलना में अधिक जल्दी-जल्दी सांस लेते हैं। वृद्ध लोगों में भी इस गैस का जोखिम ज्यादा है। इसलिए बिना वेंटीलेशन के कमरे में यह लोग अलाव का प्रयोग न करें।
कमरे में अलाव जलाते समय रखें सावधानियाँ:

 मुंह ढक कर ना सोएँ
 जहां वेटिंलेशन नहीं है, वहां ख़तरा ज्यादा
 कमरे में एक बाल्टी पानी खुला जरूर रखें
 कमरा गर्म होने के बाद अंगीठी बुझाकर सोएं।
 सांस के मरीज कमरे में अलाव ना जलाएँ।
 नवजात के कमरे में अलाव बिलकुल ना जलाएँ।
 कोरोना से जंग जीत चुके व्यक्ति रहें सावधान।
 अलाव का प्रयोग करते समय खिड़की को थोडा खोलकर रखें।

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