अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक कर रहीं डॉ॰ विजेता

 कौशांबी : अपार संभावनाओं के बाद भी कुछ लोग जीवन में शोहरत व लक्जरी जीवनशैली का विकल्प न चुनकर वो चुनते हैं मुश्किल डगर, जहां उनकी उपस्थिती जरूरतमंदों को जीवन से प्रेम करना सिखाए। आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम एक खास व्यक्तित्व की बात कर रहे हैं जो जनपद के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नेवादा में तैनात महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ॰ विजेता सिंह हैं। इनकी नियुक्ति जहां भी रही इन्होने सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने के लिए क्षेत्र की महिलाओं को उनके स्वास्थ्य के प्रति घर-घर जाकर जागरूक किया है। इस प्रयास के कारण ही अब यहाँ की महिलाएं निजी अस्पतालों के लंबे खर्चे की झंझट में न पड़कर अपने क्षेत्र में स्थित सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों पर पूरे भरोसे के साथ अपना इलाज करवा रही हैं।

डॉ॰ विजेता के पिता कमलेश सिंह व माता पुष्पा सिंह शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। इनकी स्कूलिंग कानवेंट स्कूल व मेडिकल की तैयारी गाजियाबाद जैसे मैट्रो सिटी में रहकर पूरी होती है। बचपन से पढ़ने में तेज तर्रार विजेता ने मेहनत को सीढ़ी बनाया व चिकित्सक बनने के सपने को पूरा किया। पब्लिक सर्विस कमीशन की मेडिकल परीक्षा पास कर मेडिकल ऑफिसर के पद पर जनपद कौशांबी के चायल सीएचसी में पहली नियुक्ति ली। लग्जरी जीवनशैली का मोह त्यागकर बीते दस वर्ष से ग्रामीण क्षेत्र में इन्होने कई सीएचसी व पीएचसी में बतौर महिला विशेषज्ञ के तौर पर सेवा दी है।

उन्होने बताया कि ‘चायल सीएचसी में नियुक्ति के शुरुवाती कार्यकाल में मैंने देखा की यहाँ की महिलाएं अपने स्वास्थ्य को लेकर लगभग न के बराबर जागरूक थीं। इनके मन में यह धारणा बैठ चुकी थी कि अच्छा व सुरक्षित इलाज केवल शहरों में होता है। इसी भ्रांति को खत्म करना मेरे लिए पहली और सबसे बड़ी चुनौती रही। इसके लिए मैं जहां भी नियुत रही मैंने ग्रामीण इलाकों में अस्वस्थ महिलाओं को चिन्हित किया व उन्हें उनके क्षेत्रीय पीएचसी, सीएचसी में इलाज कराने को लेकर प्रेरित किया। इससे महिलाएं धीरे-धीरे अपनी स्वास्थ्य समस्याएं लेकर स्वास्थ्य केंद्र खुद ही पहुँचने लगीं। इलाज के बाद पूरी तरह स्वस्थ होने पर इन्हीं महिलाओं ने अपने क्षेत्रों में अन्य महिलाओं को सरकारी स्वस्थ्य केन्द्रों में इलाज करवाने के लिए प्रेरित किया।‘

उन्होने कहा कि ‘मैंने हमेशा ग्रामीण महिलाओं के हौसले को बढ़ाया व उन्हें उनके स्वास्थ्य को लेकर जागरूक किया है। ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं शारीरिक श्रम ज्यादा करती हैं इसलिए उनका स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। मैं मुश्किलों से घबराई नहीं। हर मुश्किल का यह सोचकर सामना किया कि आगे और बड़ी मुश्किल आएगी। इससे दिक्कतें खत्म हो गईं। जब भी मुश्किल पड़ी, इरादा मजबूत हुआ और सफलता मिली। मैं अपने कार्य से बेहद संतुष्ट हूँ। असल में गाँव की महिलाएं बेहद संकोची होती हैं इनके इसी संकोच में छिपी होती है एक सहारे और भरोसे की उम्मीद इसी उम्मीद को मैं सहारा देकर इनके विश्वास को जीत कर एक खुशनुमा जीवन इनके ही साथ और इनके ही लिए जी रही हूँ।‘

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