प्रयागराज : पेशे से दिहाड़ी मजदूर मनोज (उम्र 29) बोन टीबी से संक्रमित हैं। इनके बाएं पैर के घुटने में दर्द शुरू हुआ। कुछ हफ्तों में यह दर्द इतना बढ़ गया कि वह चलने फिरने में असमर्थ हो गए। आर्थिक स्थिति ठीक न होने से मनोज ने कर्ज लेकर छह माह तक निजी चिकित्सालयों में अपना इलाज कराया। इलाज में लगभग 40 हज़ार रुपए तक खर्च हो जाने के बाद भी आराम न मिलने पर मनोज जिले के तेज बहादुर सप्रू चिकित्सालय (बेली) आए। यहां उनकी निःशुल्क जांच हुई और यह मालूम चला कि मनोज के घुटने का दर्द कोई आम दर्द नहीं बल्कि बोन टीबी का दर्द है।

 

इसी तरह एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी का एक रूप लिम्फ नोड टीबी भी है। जनपद के स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय में तैनात स्टाफ नर्स कमला (बदला हुआ नाम) उम्र 35 वर्ष को दिसंबर 2021 पता चला की उन्हें सरवाइकल लिम्फ नोड टीबी यानि गले की टीबी है। कमला ने बताया कि मुझे बीते कई वर्ष से गले में गांठ जैसा महसूस हो रहा था लेकिन अक्टूबर 2021 तक दर्द व: सूजन की शिकायत नहीं थी। नवंबर से गले की यह गांठ दर्द होने लगी व सूजन बढ़ने लगी। तब मैंने जिला अस्पताल में दिखाया व जांच के परिणाम से मुझे पता चला की यह गांठ कोई साधारण गांठ नहीं बल्कि टीबी की गांठ है। मैं घबरा गई लेकिन 9 माह के इलाज के बाद अब यह गांठ केवल सरसों के दाने के बराबर ही बची है। अब मैं निश्चिंत हूं। टीबी की दवाओं व पौष्टिक आहार का नियमित सेवन कर रही हूं।

मनोजकमला जैसे कई मरीज तो सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों के जरिए अब स्वस्थ जीवन जी रहे हैं लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो बोन टीबी के शिकार होने के बावजूद नीम हकीम और झोला छाप चिकित्सकों पर विश्वास कर अपनी जान आफत में डाल रहे हैं। जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ अरुण तिवारी ने बताया किटीबी रोग कई प्रकार का होता है । यह रोग बाल और नाखून को छोड़कर शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। इसका सही समय से पूरा इलाज संभव हैं। टीबी मरीजों इलाज क्षय रोग विभाग की निगरानी में निःशुल्क इलाज चल रहा है। अब मनोज जैसे टीबी के मरीजों को इलाज के लिए किसी से कर्ज लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। उन्होंने कहा कि टीबी मरीजों को इलाज के दौरान बेहतर पोषण की जरूरत होती है। निक्षय पोषण योजना के तहत मरीजों के बैंक खाते में इलाज जारी रहने तक प्रति माह 500 रुपये की सहायता राशि बेहतर पोषण के लिए भेजी जाती है। 

स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल के वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ॰ विक्रम निगम ने बताया कि टीबी कई तरह की होती है। फेफड़े की टीबी को पल्मोनरी व शरीर के अन्य हिस्से में टीबी संक्रमण पाए जाने पर इसे एक्स्ट्रापल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस कहा जाता है। टीबी का संक्रमण हड्डी तक पहुंच जाए तो यह एक्स्ट्रापल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस बोन टीबी (हड्डी की टीबी) कहलाता है। टीबी का माइकोबैक्टेरियम जीवाणु टी.बी. ग्रस्त व्यक्ति के खून के जरिये उसके शरीर में रीढ़ की हड्डीहाथ पैर के जोड़कोहनियांकलाई व शरीर के अन्य किसी भी हिस्से को संक्रमित कर देता है। इसके लक्षण तब नजर आते हैंजब बीमारी अपनी जड़ जमा चुकी होती है।

शुरू में शरीर के किसी हिस्से में लंबे समय से दर्द वा सूजन रहनाहांथ की कोहनियां खोलने व घुटनों को मोड़ने में कठिनाई महसूस होनालगातार वजन में कमी होनारात में पसीना आना और बुखार चढ़ता उतरते रहना आदि बोन टीबी के प्रमुख लक्षण है। इस स्थिति में बिना देरी किये चिकित्सक से मिलें। सामान्य टीबी का इलाज माह में पूरा हो जाता है। बोन  टीबी के सफल इलाज में 12 से 18 महीने का वक्त भी लग सकता है। इसमें दवा नहीं छोड़नी चाहिए। दवा छोड़ने पर दवा के प्रति प्रतिरोधक शक्ति बन जाती है और फिर इलाज लंबा चलता है।

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