SHUATS यूनिवर्सिटी में बिना यूजीसी से मान्यता मिले चल रहे कई कोर्स
मुख्य बिन्दु :
· सत्ता के सानिध्य में रहकर यूजीसी का बनाया मज़ाक
· यूजीसी के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में दी थी चुनौती
· फैसले के खिलाफ दायर याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज
· हजारों छात्रों का भविष्य खतरे में, अब क्या करेंगे छात्र
· वीसी,रजिस्ट्रार व समस्त विश्वविद्यालय प्रबंधन जिम्मेदार
लखनऊ/डेस्क : धर्मांतरण तो कहीं अवैध नियुक्ति तो कहीं धांधली जैसे अनेक विवादों में रहने वाला उत्तर-प्रदेश के जनपद प्रयागराज का SHUATS विश्वविद्यालय एक बार फिर सुर्खियों में है। विश्वविद्यालय के पुरा छात्र दिनेश शुक्ला ने बताया कि "विश्वविद्यालय में वर्ष 2010 के बाद से कई कोर्स बिना यूजीसी से मान्यता प्राप्त किए अवैध रूप से चल रहे हैं। धन उगाही के लिए साठ-गांठ के बलबूते दिल्ली हाई-कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को नजरंदाज कर हज़ारों छात्रों का प्रवेश विश्वविद्यालय में किया है। अब विश्वविद्यालय प्रशासन यह बताए की 2010 के बाद कितने कोर्स विश्वविद्यालय में शुरू किए गए और इनमें से कितने कोर्स को यूजीसी से मान्यता मिली है।"
अब दिनेश
शुक्ला ने कोर्ट के फैसलों से जुड़े दस्तावेज़ को सोशल मीडिया पर सार्वजनिक कर दिया
है। इस घटना के बाद से शुआट्स प्रशासन में खलबली मच गई है। दस्तावेज़ के अनुसार यह
स्पष्ट होता है की "वर्ष 2010
के पश्चात SHUATS
में कई कोर्सों की शुरुआत की गई थी। जिन कोर्सों को यूजीसी ने परमिशन नहीं दी थी पर SHUATS में वह
कोर्स संचालित किए गए। जिसको लेकर SHUATS विश्वविद्यालय और यूजीसी के बीच कोर्ट में मामला
चला जिसको लेकर बीते 14 अक्टूबर 2022 को
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को संज्ञान में लेते हुए वर्ष 2010 के बाद यूजीसी
से बिना मान्यता मिले शुरू किए गए सभी कोर्सों को सुप्रीम
कोर्ट ने अवैध करार दिया है। कोर्ट के फैसले से जुड़े दस्तावेज़ सोशल मीडिया
पर वायरल हो गए हैं।
मामले की शुरुआत यहाँ से हुई
विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि “यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब यूजीसी के द्वारा SHUATS विश्वविद्यालय को परमिशन न मिलने के बावजूद चल रहे सभी कोर्सों को बंद करने का नोटिस भेजा गया। तब आनन फानन में SHUATS विश्वविद्यालय ने 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट में यूजीसी को चुनौती दी। दोनों पक्षों को सुनने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने 2015 में ही अपना फैसला सुनाते हुए यह कहा कि 2010 के पहले शुरू किए गए सभी कोर्स यथावत संचालित किए जाते रहेंगे। जबकि 2010 में यूजीसी रेगुलेशन आ जाने के कारण 2010 के बाद शुरू किए गए सभी वह कोर्स अवैध माने जाएंगे जिन्हें यूजीसी ने परमिशन नहीं दी थी।“
इलाहाबाद एग्रीकल्चरल इंस्टीट्यूट को एक विश्वविद्यालय का दर्जा 15 मार्च वर्ष 2000 को मिल गया था। विश्वविद्यालय बनने के बाद से डॉ आरबी लाल ने बिना यूजीसी से परमिशन लिए एक के बाद एक बहुत सारे कोर्स आरंभ कर दिए। यूजीसी ने विश्वविद्यालय को लगातार नोटिस देकर कहा कि बगैर यूजीसी के परमिशन के विश्वविद्यालय कोई नया कोर्स शुरू नहीं कर सकता है। विश्वविद्यालय यह नजर अंदाज करता रहा। यही गलती इस बार भारी पड़ गई है।
यूजीसी के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में दी चुनौतीयूजीसी
की कठोर चेतावनी से घबराकर विश्वविद्यालय ने वर्ष 2015 में
दिल्ली हाईकोर्ट मैं यूजीसी के खिलाफ मुकदमा दायर किया। वर्ष 2015 में ही
इस मुकदमे का फैसला आ गया जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए यह कहा
कि जिन कोर्सेस को विश्वविद्यालय ने वर्ष 2010 से पहले प्रारंभ किए हैं, वह तो यथावत चलते रहेंगे, परंतु वर्ष 2010 के बाद
शुरू किए गए ऐसे सभी कोर्स अवैध हैं जिनकी यूजीसी से परमिशन नहीं ली गई थी जिसे
शुआटस् विश्वविद्यालय को तत्काल प्रभाव से बंद करना पड़ेगा।
विश्वविद्यालय की सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की खारिज
दिल्ली
हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए SHUATS विश्वविद्यालय सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया जिसका
फैसला 7 वर्ष
पश्चात अर्थात 14 अक्टूबर 2022 को आ गया
! सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में हाईकोर्ट के फैसले को उचित बताते हुए उसमें
हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक शुआटस् को 2010 के
पश्चात प्रारंभ किए गए कई कोर्सेज को बंद करना
पड़ेगा।
छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों का भी भविष्य खतरे में
वर्ष 2010 के
पश्चात SHUATS में लगभग
50 नए
कोर्सों की शुरुआत की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद अब SHUATS को उन
सभी 50 कोर्सेज
को बंद करना पड़ेगा जो 2010 के बाद
संचालित किए गए थे। इसके दुष्परिणाम स्वरूप बहुत सारे शिक्षक और कर्मचारी बेरोजगार
भी हो सकते हैं।
SHUATS वीसी और रजिस्ट्रार सहित पूरा प्रबंधन जिम्मेदार
दिनेश शुक्ला ने
कहा की “विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले हजारों विद्यार्थियों का भविष्य भी
दांव पे है। आखिर इतनी बड़ी गलती का जिम्मेदार कौन है? क्या उन
बच्चों का दोष था जो बड़े बड़े सपने लेकर शिक्षण संस्थान में पढ़ाई करने के लिए
आते हैं या फिर उन शिक्षकों और कर्मचारियों की गलती थी जिन्हें छः-छः महीनों से
वेतन भी नहीं मिला है। इन सभी गलतियों के पीछे SHUATS वीसी और
रजिस्ट्रार सहित पूरा प्रबंधन जिम्मेदार है। इस मामलों
में SHUATS के वीसी
सहित सभी जिम्मेदार अधिकारियों पर सख्त से सख्त कार्यवाही
होनी चाहिए।“
सवाल का जवाब दे विश्वविद्यालय प्रशासन
क्या
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद अब SHUATS को इन कोर्सेज
को बंद करना पड़ेगा जो 2010 के बाद
संचालित किए गए। इसके दुष्परिणाम स्वरूप बहुत सारे शिक्षक और कर्मचारी बेरोजगार भी
हो सकते हैं। विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले हजारों विद्यार्थियों का भविष्य भी
दांव में लग सकता है आखिर इतनी बड़ी गलती का जिम्मेदार कौन है ?
रिपोर्ट : सुचिता पाण्डेय, वरिष्ठ संवाददाता लखनऊ॥
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